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Aug 24, 2010

जानिए क्या है ”डीमैट” अकाउंट

क्या है डीमैट अकाउंट?यह वो अकाउंट है जिसके जरिए या शेयर बाजार में खरीदफरोख्त की जाती हैं। इसके जरिए इन्वेस्टर शेयरों और सिक्योरिटीज को इलेक्रॉर निक फॉफॉर्म में रख सकते हैं। सिक्योरिटीज को फिजिकल फार्मेट मे बदलने की प्रक्रिया को ‘डीमेटिरियलाइजेशन’ कहते हैं। और इसी का शार्ट फॉर्म ‘डीमैट’ है।

कैसे खुलेगा डीमैट एकाउंट?डीमैट एकाउंट खुलवाना सेविंग अकाउंट खुलवाने जितना ही आसान है। आपको बस अपने पैन नंबर, बैंक स्टेटमेंट और सैलरी स्लिप के साथ डीमैट एकाउंट खुलवाने का फॉर्म भर कर जमा करवाना पड़ेगा। एकाउंट चालू होते ही आप शेयरों की खरीद-बिक्री कर सकते हैं।

कितना खर्च आएगा?अकाउंट खुलवाने का खर्च 300-700 रुपए के बीच होता है। इसके अलावा आपको सालाना मेंटेनेन्स चार्ज भी देना पड़ेगा, जो अलग अलग कंपनियों के डीमैट पर अलग अलग होता है।

क्या एक से ज्यादा डीमैट अकाउंट रख सकते हैं?आप एक साथ कई डीमैट एकाउंट रख सकते हैं। लेकिन एक कंपनी में आप अधिकतम तीन अकाउंट खुलवा सकते हैं। कई मामलों में तो एक से ज्यादा डीमैट अकाउंट रखना अनिवार्य हो जाता है। मसलन अगर आपके नाम पर कुछ सिक्योरिटीज हैं और कुछ सिक्योरिटीज आपके परिवार के किसी दूसरे सदस्य के साथ ज्वाईंट हैं तो आपको दो डीमैट अकाउंट्स की जरूरत पड़ेगी।

पूंजी बाजार में माइक्रोफाइनेंस

छले दिनों एक माइक्रोफाइनेंस कंपनी अपने आईपीओ को लेकर चर्चा में रही। माइक्रोफाइनेंस यानी क्या? ठेले पर सब्जी बेचने, पापड़-बड़ियां बन
ाने या सड़क किनारे पंक्चर जोड़ने जैसे छोटे-मोटे कारोबार करने वालों के लिए सबसे बड़ी मुश्किल यह होती है कि उनके पास बंधक रखने को कुछ होता नहीं और बैंक इसके बगैर उन्हें कर्ज देने को तैयार नहीं होते। सामान्य स्थितियों में तो उनका धंधा चलता रहता है, लेकिन किसी हारी-बीमारी में, किसी प्राकृतिक आपदा का शिकार हो जाने पर, घर बनाने या शादी-ब्याह जैसे बड़े खर्चों का बोझ उठाने के लिए वे साहूकार से बहुत ऊंची दर पर कर्ज लेते हैं और अक्सर ब्याज चुकाने में ही उम्र गंवा देते हैं।

माइक्रोफाइनेंस ऐसे ही लोगों को कर्ज देने का एक उपाय है। इस धंधे के साथ कुछ मुश्किलें जुड़ी होती हैं। कर्ज बांटने और वसूली करने के लिए बड़ा स्टाफ रखना होता है।


बांटा गया कर्ज बट्टेखाते में चले जाने की आशंका ज्यादा होती है। इन मुश्किलों के चलते जल्दी कोई इसमें अपनी पूंजी लगाने की हिम्मत भी नहीं करता। बहरहाल, देश में पहली बार आए इस माइक्रोफाइनेंस कंपनी के आईपीओ की दो अलग-अलग नजरियों से आलोचना की गई। एक नजरिया नैतिकतावादियों का था, जिनके मुताबिक माइक्रोफाइनेंस छोटी आमदनी में गुजारा करने वालों को मदद पहुंचाने का जरिया है और इससे जुड़ी किसी कंपनी का पूंजी बाजार में उतरना देश को आधिकारिक रूप से साहूकार युग में ले जाने जैसा है।

दूसरा नजरिया खुद पूंजी बाजार के महारथियों का था। इनमें से कई यह मानने को तैयार ही नहीं थे कि कोई माइक्रोफाइनेंस कंपनी अपने आम शेयरधारकों के प्रति जवाबदेह हो सकती है। इन दोनों नजरियों में कौन सही है कौन गलत, या फिर ये कहीं दोनों ही पूर्वाग्रह के शिकार तो नहीं हैं, इस बारे में अंतिम राय देने का समय अभी नहीं आया है। अलबत्ता एक बात तय है कि भारत में माइक्रोफाइनेंस के लिए जमीन बड़ी उपजाऊ है। यहां गुजारे के स्तर के कारोबारी कुछ बंधक रखे बगैर छोटे-मोटे कर्ज हासिल करने के लिए ऊंचा ब्याज चुकाने को भी तैयार रहते हैं। इस हकीकत को समझकर कुछ माइक्रोफाइनेंस कंपनियों ने इधर अपने लिए अच्छा कारोबार खड़ा किया है, हालांकि उनका असली इम्तहान सूखे, बाढ़ और भूकंप जैसी आपदाओं के दौर में होना है, जब उनमें पूंजी लगाने वाले मुनाफा चले जाने के डर से अपनी पूंजी खींचने लगते हैं और कर्ज लेने वाले उसे लौटाने की हालत में नहीं होते।

Aug 21, 2010

जानिए क्या है ‘सिबिल’

आजकल आपको बहुत से लोग सिबिल की चर्चा करते मिल जाएंगे और बातएंगे की उनका नाम सिबिल में चला गया है। और अब उन्हें लोन वगैरह नहीं मिलेगा। आइए हम आपको बताते हैं कि सिबिल क्या है और उससे आप कैसे छुटकारा पा सकते हैं।

सिबिल का पूरा फॉर्म है क्रेडिट इंफॉरमेंशन ब्यूरो( इंडिया) लिमिटेड। यह एक प्राइवेट संगठन है और इसके सद्स्य स्टेट बैंक ऑफ इंडिया सहित भारत के सभी बड़े सरकारी और प्राइवेट बैंक हैं यह आईएसओ 27001:2005 प्राप्त संगठन है और इसका दावा है कि वह अपने डेटा को सिर्फ अपने सदस्यों को ही देता है। यह भारत का पहला इस तरह का संगठन है। और इसका रजिस्टर्ड कार्यालय नरीमन प्वाइंट मुंबई में है।

सिबिल अपने सदस्य बैंकों के लिखित आग्रह पर किसी व्यक्ति या फर्म या लिमिटेड कंपनी के कर्ज चुकाने का इतिहास आंकडे वगैरह उपलब्ध कराता है। इन आंकडों के सहारे वह बैंक या संस्था, किसी व्यक्ति या कंपनी की आर्थिक स्थिति और उसके लोन चुकाने की आदत जान लेती है। इससे वह बैंक अनावश्यक जोखिम से बच जाता है। ग्राहकों को भी इसका फायदा होता है। अगर उनका रिकार्ड क्लीन है तो उसे तुरंत लोन मिल जाता है जो ग्राहक लोन नहीं चुकाते या बराबर डिफॉल्ट करते रहते हैं उनके तमाम आंकडे सिबिल के पास जाते ही उसके सद्स्य य बैंक उसे शेयर कर लेते हैं। ज्यादातर मामलों में ऐसे लोगों को लोन या क्रेडिट कार्ड नहीं मिल पाता है।

सिबिल अपने सदस्य बैंकों को व्यक्तिगत ग्राहकों और फर्मों तथा कंपनियों वगैरह की लोन हिस्ट्री के अलावा अन्य तरह की सूचनाएं भी उपलब्ध कराता है मसलन पासपोर्ट नंबर, वोटर आईडी कार्ड, जन्मतिथि वगैरह। इसी तरह कंपनियों के मामले में उनका रजिस्ट्रेशन नंबर वगैरह उपलब्ध कराता है। इसके लिए सिबिल के पास दो सेगमेंट हैं। एक है कंज्यूमर क्रेडिट ब्यूरो और दूसरा कमर्शियल क्रेडिट ब्यूरो। ये बैंकों, वित्तीय संस्थाओं वगैरह से सूचनाएं एकत्र करते हैं और अपने सदस्यों को देते हैं।

अगर आपका नाम सिबिल में चला गया है और आपने तमाम कर्ज चुका दिए हैं तो आप कर्जदाता बैंक से कहे कि वह आपका नाम सिबिल से हटवाए। आपका नाम सिबिल में है या नहीं इसके लिए उनकी वेबसाइट डब्ल्यू डब्ल्यू डब्ल्यू डॉट सिबिल डॉट कॉम पर लॉग करके जान सकते हैं। पूरी रिपोर्ट लेने के लिए आपको 142 रुपए खर्च करने होंगे। आम धारणा के विपरीत सिबिल किसी को डिफॉल्टर घोषित नहीं करता है। वह व्यक्ति या कंपनी की सिर्फ फाइनेशियल हिस्ट्री बताता है। वह किसी के बारे में कोई टिप्पणी नहीं करता।





कौन कौन है सिबिल के शेयर होल्डर:- स्टेट बैंक ऑफ इंडिया(10%),आईसीआईसीआई बैंक (10%) एचडीएफसी बैंक लि.(10%), स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक (5%), सैंट्रल बैंक ऑफ इंडिया (5%) सिटीकार्प फाइनेंस इंडिया लि. (5%), यूनियन बैंक ऑफ इंडिया (5%), पंजाब नेशनल बैंक (5%), इंडियन ओवरसीज बैंक (5%), बैंक ऑफ इंडिया 95%), बैंक ऑफ बड़ौदा (5%), जीई स्ट्रेटजिक इंवेस्टमेंट इंडिया (2.5%), सुंदरम फाइनेंस लि.(2.5%), इनऐंड ब्रैडस्ट्रीट इंफोरमेंशन सर्विसेज इंडिया प्रा. लि.(0.01) और ट्रांस इंटरनेशनल इंक (19.99%)।