Mar 1, 2013

साहब यह गाँव का बैल है कोई शहरी दफ्तर का बाबू नही ...

एक काँलेज के प्रोफेसर साहब गाँव घूमने गये ।
वहां उन्होने देखा कि कोल्हू से बधा
बैल चक्कर काटे जा रहा है
और पास ही पडा उसका मालिक
सो रहा है
... उसने कोल्हू के मालिक ग्रांमीण को उठाकर
पूछा ,
तुम तो सो रहे हो,
तुम्हे कैसे पता चलेगा कि बैल चलते चलते रूक
तो नही गया ?
ग्रामीण ने बताया उसके गले मे घंटिया बंधी है।
जब रूकेगा तो घंटियो की आवाज आनी बंद
हो जायेगी
और मुझे पता चल जायेगा ।।
प्रोफेसर साहब ने फिर पूछा ,
मान लो वह एक स्थान पर खडे खडे ही गर्दन
हिलाता रहे तो ?
ग्रामीण ने समझाया ,
साहब यह गाँव का बैल है
कोई शहरी दफ्तर का बाबू नही ।।
बात समझो.....

1 comment:

  1. हा हां हा....बाबुओं पर शानदार व्यंग्य

    Gyan Darpan

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